मैं-हूं
तुम जो भी करो उसमें सदा याद रखो कि मैं हूं। तुम पानी पीते हो तुम भोजन करते हो सब में सदा याद रखो कि मैं हूं। इसे भूले मत। यह स्मरण कठिन होगा। तुम सोचते हो कि मैं जानता ही हूं की मैं हूं, इसे याद रखने की क्या जरूरत है? लेकिन सच यह है कि तुम्हे नहीं याद है कि तुम हो। यह विधि बहुत संभावना से भरी है। जब चल रहे हो तो याद रखो कि मैं हूं। चलना जारी रहे, चलते रहो लेकिन निरंतर इस आत्म-स्मरण से जुड़े रहो कि मैं हूं। इसे भूलो मत। तुम मुझे सुन रहे हो यहीं प्रयोग भी करो। तुम मुझे सुनते हो उसमें डुबो मत, उससे तादात्म्य मत करो। जो भी मैं कहता हूं, उसे सुनने के साथ-साथ अपने को याद रखो, भूलो मत। सुनना रहे, शब्द रहें कोई बोल रहा है और तुम हो- यानी यह स्मरण कि मैं हूं, मैं हूं, मैं हूं। इस मैं हूं को बोध का स्थायी अंग बन जाने दो। यह बहुत कठिन है। पूरे एक मिनिट के लिए भी तुम लगातार स्मरण नहीं रख सकते। एक प्रयोग करो। अपने सामने घड़ी रख लो और सेकंड की सुई को देखना शुरू करो। एक सेकंड, दो सेकंड, तीन सेकंड- उसे देखते जाओ। दो काम एक साथ करो- सेकंड बताने वाली सुई को देखो और निरंतर स्मरण करो, मैं हूं, मैं हूं। प्रत्येक सेकंड के साथ स्मरण रखो कि मैं हूं। पांच या छह सेकंड के अंदर तुम देखोगे कि तुम भूल बैठे। अचानक तुम्हे याद आएगा कि कई सेकंड गुजर गए और स्मरण नहीं किया कि में हूं। ’पूरे एक मिनिट भी स्मरण रखना चमत्कार है। और अगर तुम एक मिनिट तक याद रख सके तो यह विधि तुम्हारी है। तब इसका प्रयोग करो। इसके द्वारा तुम सपनों का अतिक्रमण कर जाओगे और जानोगे कि सपने सपने हैं।