आत्मा और परमात्मा

आत्मा और परमात्मा


हमारी आत्मा और परमात्मा एक ही है। इस बात को मानते तो सभी है, लेकिन इसे आत्मसात कर लेने वाले बिरले ही महा पुरुष होते है। वे किसी भी सुख-दुख से अप्रभावित रहते हुए पाप- पुण्यो को छोड़ कर आत्मा में ही रमण करने लगते है। उन मनुष्यों के के सभी कर्म दिव्यता को प्राप्त होते है। जब हम दूसरों पर भरोसा करते है और दूसरों पर ही निर्भर करते है तो उस स्थिति में हम अपनी आत्मिक शक्ति खो देते है  अतः जगत पर निर्भर होने के बजाय अपनी आत्मा पर ही भरोसा करे। जब हम दूसरों का भरोसा छोड़ कर केवल अपनी आत्मा का ही भरोसा करेंगे तो जगत की सभी सम्पदायें स्वतः ही आप के पास आने लगेगी। हमारी दृष्टि जगत और केवल एक आत्म तत्व पर ही स्थिर होनी चाहिए। लोगों की धमकी और प्रशंसा को काट कर केवल आत्म तत्व पर ही दृष्टि रखें।


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