प्रेम को फैलाओ!

प्रेम को फैलाओ!


जहां तुम्हें प्रेम करने का अवसर मिले, चूकना मत नहीं तो चूकने की आदत मजबूत हो जाती है। अगर ज्यादा चूकते रहे तो चूकना तुम्हारा ढंग हो जाता है। प्रेम का रास्ता तब असंभव है। और हम जगह-जगह चूकते हैं।
प्रत्येक घड़ी को प्रेम की घड़ी बनाओ! कोई प्रेम के लिए परमात्मा ही उतरेगा आकाश से तब तुम प्रेम करोगे! तो जिस दिन परमात्मा उतरेगा उस दिन पाओगे कि प्रेम करना तो तुम जानते ही नहीं। इसका अभ्यास करो! 
जो मिल जाए, घड़ीभर का साथ हो जाए रास्ते पर किसी से, फिर तो रास्ते अलग हो जाएंगे, कोई गीत आता हो, गीत गुनगुनाकर सुना दो! कुछ न आता हो, आंख तो तुम्हारे पास है, प्रेम से गीली आंख से उसे देख लो! तुम उसके सपनों के हिस्से हो जाओगे। वह तुम्हारी याद करेगा, लौट- लौटकर तुम्हारी याद करेगा। और जब-जब तुम्हारी याद करेगा, भीतर तुम्हारे प्राणों में भी अज्ञात तार कपेंगे क्योंकि हम सब जुडे हैं। हम अलग-अलग नहीं है। 
प्रेम के संबंध में तुम बहुत कंजूस हो। लेकिन लोग समझते हैं, शायद यह कंजूसी बड़ी कीमत की है।