प्रेम

प्रेम दूरी बर्दाश्त नहीं करता


प्रेम करोगे तो विरह झेलोगे ही, क्योंकि जिसे चाहोगे जब चाहोगे तभी न मिल जाएगा। और जितना चाहोगे उतना निष्ठुर मालूम होगा क्योंकि जितना माँगोगे, उतना ही पाओगे तो लगेगा दूरी अभी और शेष है प्रेम दूरी बर्दाश्त नहीं करता इंच भर दूरी बर्दाश्त नहीं करता। प्रेम द्वैत बर्दाश्त नहीं करता। और जब तक द्वैत रहता है तब तक विरह रहता है। प्रेम तो अद्वैत चाहता है। प्रेम तो चाहता है एक हो जाऊँ बिल्कुल एक हो जाऊँ इस संसार में प्रेम की अगर कोई भूल है तो बस इतनी ही है कि इस संसार का कोई भी प्रेम अद्वैत का अनुभव नहीं देता। और देता भी है तो क्षणभंगुर को जरा सी देर को एक झलक झलक आई और गई। और झलक जाने के बाद और भी अंधेरा रह जाता है और भी गड्ढे में गिर जाते हो, और भी विषाद घना हो जाता है मैं तो तुमसे कहता हूँ इस जगत के प्रेम को जानो ताकि द्वैत छाती में चुभ जाए कटार की भाँति, तभी तो तुम अद्वैत की तरफ चलोगे। तभी तो तुम उस परम प्यारे को खोजोगे जिसके साथ मिलन एक बार हुआ तो हुआ। जिसके साथ मिलन होने के बाद फिर कोई बिछुड़न नहीं होती।
किसी स्वतंत्र विचार स्त्री से प्रेम किसी उन्मुक्त स्वभाव स्त्री से प्रेम ऐसी स्त्री जो बहती नदी के समान ऐसी स्त्री जो गुजरती हवा के समान खुले गगन में उड़ते पंछी जैसी पहचान जिसमें हो स्त्रियोंचित गुणों की भरमार हर प्रकार के बंधनों से मुक्त विचार, क्रियाकलापों से उन्मुक्त जो जीती हो वर्तमान में जिसका कोई वादा नहीं कल में उसका यही मुक्त स्वभाव तोड़ेगा तुम्हें चोट देगा तुम्हारे पुरुषवादी अहम को यदि अहम ना छोड़ पाए तो भर देगी हीन भावना से तुम्हें वह बात बात में तुम्हें आजमाएगी अपनी कसौटी पर कसेगी बस चलना होगा तुम्हें उसके बहाव के साथ लाना होगा सहज भाव रोकने की कोशिश ना करना बांधने  की कोशिश ना करना अगर कोशिश की तुमने कभी तो बांध तोड़ कर बह जाएगी हर बंधन से मुक्त होकर अपनी ही मौजों में मगन हो जाएगी अगर जरा सा भी अधिकार लाए तो छिटक जाएगी आधिपत्य लाए बुद्धि लाए तुमसे दूर हो जाएगी प्रश्न ना करना मौन हो जाएगी उससे प्रेम के लिए साधना होगा तुम्हें अंतस तक स्वयं प्रेम हो जाना होगा अपने अहम की तिलांजलि दे देनी होगी पूर्ण स्वतंत्रता उसे स्व को समर्पित कर देना होगा आसान नहीं है मुक्त भाव स्त्री से प्रेम...
ध्यान
समकालीन लोगों के लिए ध्यान, जागरूकता, चेतना उपलब्ध कराने में एक क्रांति का प्रतिनिधित्व करते हैं। और उस सरल प्रस्ताव का भी जो स्वयं के जीवन के बदलाव के लिए है...
उनकी समझ है कि यदि आधुनिक पीढ़ी मौन में बैठने की कोशिश करेगी, तो उन्हें अपने भीतर का पागलपन दिखाई पड़ेगा। उनकी इस बात की पुष्टि कई वैज्ञानिक अध्ययन में हुई है, जिनमे लोगों के मौन शिविर जैसी जगहों में जाने से होने वाले बुरे असर को देखा गया है। ओशो यह भी कहते हैं कि अगर लोग विक्षिप्त नहीं हो रहे, तो केवल इसलिए कि वे पूरी ईमानदारी से मौन में नहीं बैठते।
ओशो कहते हैं कि, अगर हम अपने शारीर को ष्पागलों की तरह गति दें- हमारे संगृहीत तनावों को व्यक्त और मुक्त करने के लिए- तो हमें पता चलता है कि हमारा केंद्र मौन है।
इसलिए ध्यान में पहला कदम ओशो सक्रिय ध्यान विधियां और ओशो इवनिंग मीटिंग हैं। एक बार जब हम शरीर और मन को, उसके विचारों और भावों समेत, देख पाने में कुशल हो जाते हैं, फिर इस कुशलता का प्रयोग हम अपने दैनिक जीवन में ला सकते हैं। फिर जो भी घट रहा है वह एक ध्यान का अनुभव बन सकता है। तुम मौन में बैठ सकते हो, मौन में चल सकते हो, मौन में काम कर सकते हो या मौन में खेल सकते हो, चाहे तुम अकेले हो या दूसरों के साथ। यह तुम्हारे हाथ में है।
जैसा की हम सभी पहले से जानते हैं कि सड़क के किनारे खड़े होकर कैसे यातायात के आवागमन को देखना है, ध्यान बस वही क्षमता है जो हम सब के पास पहले से है और इसे बस भीतर के यातायात के लिए लागू करना है।
दरअसल ओशो कहते हैं
 एक ध्यान करने वाले को व्यक्तिगत मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती। इसके विपरीत ध्यानी को केवल एक चीज की आवश्यकता होती है ध्यान का वातावरण। उसे दुसरे ध्यानियों की जरूरत हैय उसे अन्य ध्यानी से घिरा होना चाहिए। क्योंकि जो कुछ भी हमारे भीतर घटित हो रहा है वह केवल हमारे भीतर ही नहीं हो रहा, उसका असर हमारे आस पास के लोगों पर भी पड़ता है। इस परिसर में लोग ध्यान के अलग अलग चरणों पर हैं। इन लोगों के साथ ध्यान करना, बस इनके साथ मौन में बैठना, और तुम खींचते ही चले जाओगे, अधिक और अधिक अपनी आतंरिक संभावना कि ओर। 
बिल्कुल ऐसा ही वातावरण आपको मिलेगा ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसॉर्ट में। और यदि आपको लगता कि किन्ही व्यक्तिगत मानसिक मुद्दों के कारण आप अटके हुए हैं जो आपके ध्यान में बाधा खड़ी करते हैं तो उनसे निपटने में सहायता के लिए यहां ओशो मल्टीवर्सिटी में कोर्सेस, सेशंस और क्लासेस उपलब्ध हैं।